Thursday, March 23, 2006

समरथ को तो..

बहुत दिनों से मन में दुविधा चल रही है कि इससे पहले की कंपनी की असफलताऒ का ठीकरा किसी के सर पर फोठा जाये, मैं ही अपने लाभ के पद से त्यागपत्र दे दूं । इससे दो फायदे होंगे बेचारे वरिष्ठ लोगों (मेनेजरो) को मुर्गा तलाश नहीं करना पडेगा और मेरा भी काम (नौकरी) छोडने का हो जायेगा..
भगवान ने चाहा तो कुछ बेहतर माथा-पच्ची करूगा, तभी आत्मा की आवाज़ आई, जैसे कि ज्ञानियो को आती है, कि मूर्ख ऐसा मत करियो!!
मैने कहा क्यों नहीं? सारे लोग ऐसे ही बलिदान देते है और अमर हो जाते है, मै क्यों नहीं कर सकता?
आत्मा ने कहा - याद कर तुलसीदासजी को.."समरथ को नही दोष गोसाईं!!"
मुझे समझ आया.. .."समरथ को तो बलिदान है भाई!!"

Sunday, March 19, 2006

जहाँ चाह वहाँ राह!!

वेबदुनिया पर ये समाचार पढ़ा .. सच है जहाँ चाह वहाँ राह!
प्रशांत जैसे अनगिनत हीरों को शत शत नमन!!

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