रंग-ए-खुदा (The Color of Paradise)
रंग-ए-खुदा का बाल नायक मोहम्मद एक आठ-नौ वर्षीय नेत्रहीन बालक है। नेत्रहीन बालक अपनी कमजोरियों के बावजूद स्पर्श और सुनने की क्षमता से खुदा के उन रंगो को देख सकता है जो सामान्य लोग नहीं समझ सकते।
मोहम्मद का विधुर पिता उसे तेहरान के नेत्रहीनों के स्कूल से उत्तरी ईरान में अपने गांव छुट्टियों में ले जाता है। गांव में दादी और दो बहनें, मोहम्मद को मिल कर बहुत खुश होते है। दादी गांव के स्कूल के मास्टर से मिल कर मोहम्मद को एक दिन के लिये कक्षा में जाने देती है, पिता दुबारा शादी करना चाहता है उसे लगता है कि एक नेत्रहीन बालक उसके लिये सामाजिक शर्मिंदगी का कारण है। वह जबरदस्ती मोहम्मद को दूर के गांव में एक नेत्रहीन बढई के पास काम सीखने के लिये भेज देता है। इस फैसले से दादी खफा हो जाती है। मोहम्मद के पिता के मानसिक संघर्ष, आशाहीनता और अस्तित्व की लडाई की कहानी देखने लायक है, पिता का खुदा के रंगो को बच्चे के नजरिये से देखने का प्रयास रंग लाता है और वह प्रकृति के रचियता के सामने खुद को समर्पित कर मोहम्मद को वापस ले आता है।
पूरी तरह से काव्यात्मक तरीके से बनाई गई इस फिल्म में ईरान के उत्तरी भाग की प्राकृतिक सुन्दरता को बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है। पक्षीयों की आवाज और मोहम्मद की प्रतिक्रिया सुनने और देखने का आनंद बयान नहीं किया जा सकता!
बच्चों के माध्यम से सामाजिक आईने को दिखाने की मजीद भाई की एक और शानदार प्रस्तुति!
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