Sunday, December 21, 2008

बर्फीली बारिश

पिछले हफ्ते मौसम की पहली बर्फीली बारिश के दौरान अलबेनी जाते समय इंटरस्टेट ९0 पर खींची हुई कुछ तस्वीरें..

Highway


Ice on Trees


Macro

प्रकृति के रंग ये भी!

आफिस से घर लौटते समय कनेक्टिकट नदी के किनारे सूर्यास्त के समय की तस्वीर

Monday, November 03, 2008

राजनीतिक दल

ये तीनों क्या आपको देश के तीन बडे राजनीतिक दलों घटकों को दर्शाते हुए नहीं लगते, बैठे तीनो ऊंचे टीले पर है लेकिन देश की समस्याओं के प्रति उदासीन, अपनी अपनी दिशा तलाशते हुऐ!


इस साल गर्मियों में पूरे परिवार के साथ न्यू जर्सी के अम्यूजमेंट पार्क में सफारी को घूमने का मौका मिला। यहाँ की वेबसाइट के अनुसार अफ्रीका के बाहर विश्व की सबसे बडी ड्राईव-थ्रू सफारी है आज की तस्वीर इस सफारी से है।

Saturday, November 01, 2008

प्रकृ्ति के रंग

अमेरिका में पतझड समाप्ति की ओर है, पेडों पर पत्तों के रंग हरे से पीले, नारंगी, लाल, गुलाबी रंगों में बदल कर गिर जाते हैं। कुछ तस्वीरें मासेचुसेट्स में मेरे घर के आस-पास से।।








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Saturday, October 25, 2008

परछाई




नियाग्रा नदी में अकेले उडान भरते हुये पक्षी की परछाई



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Thursday, October 23, 2008

कद्दू

अमेरिका में हैलोवीन की तैयारी चल रही है, लोग अपने घरों, बगीचों और खेतों को कद्दूओं से भूत निवास जैसा सजा रहे हैं और खुद त्यौहार के दिन डरावनी पोशाकों में सजते हैं। मेरे गांव की नर्सरी के आस-पास कद्दूओं की बडी-बडी दुकानें देखने लायक होती है, लोग इस त्यौहार पर कद्दूओं से बनाये गये कई पकवान खाते हैं, हाल ही में एक मेले में जाने का संयोग बना, उस मेले में आस-पास के किसानों ने अपने विशालकाय कद्दूओं का प्रदर्शन किया, इस १२८४ पौंड के कद्दू को प्रथम स्थान मिला
९७२ पौंड के वजन के साथ ये रहा दूसरा
६४१ पौंड के साथ ये रहा तीसरा

अंग्रेजी में कहावत है You are what you eat , अब यदि अमेरिकी ये साइज के फल और सब्जी खा रहे हैं तो फिर क्यों मोटापे में विश्व में अग्रणी ना हों :)

बोस्टन - घोडागाडी और इंडिया स्ट्रीट


बोस्टन यात्रा के दौरान एक सजी हुई घोडागाडी देखने को मिली, ये तांगे वाला बडी बेसब्री से ग्राहकों का इंतजार कर रहा है।





गाडी को भी लाइसेंस दिया गया है ये रही उसकी तस्वीर
मेरा ऐसा सोचना है कि अपने देश में आटो रिक्शा वालों के कारण तांगे वालों की हालत बहुत खराब हो गई होगी और शायद कुछ सालों में तांगे विलुप्त हो जायेंगे।

और चलते-चलते, काश पाटिल साहब आंतकवादियों को ये रास्ता दिखा देते -
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Sunday, October 19, 2008

बोस्टन यात्रा

द्वितीय विश्व युद्ध के समय सहयोगी सेनाओं के सामने एक कठिन समस्या थी कि सैनिकों और युद्ध सामग्री को उन सभी स्थानों पर कैसे पहुंचाया जाये जहाँ या तो बंदरगाह नहीं है या फिर बरबाद कर दिये गये हैं? आवश्यकता की पूर्ति के लिये एक ऐसे वाहन का निर्माण किया गया जो कि ट्रक भी था और नाव भी - और इसे नाम दिया गया DUKW (DUCK) या बतख!
कई शहरों में इन बतखों का प्रयोग अब पर्यटक वाहन के रुप में किया जाता है। बोस्टन शहर की एक बतख

(चित्र विकीपिडिया से साभार)

इस बतख यात्रा के दौरान खींची कुछ तस्वीरें -

दूध की बोतल

और चाय की केतली


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खिड़कियाँ

यह पोस्ट सुनील दीपक जी की इस पोस्ट से प्रेरणा ले कर छापी गई है, छायाचित्रकारी में सुनील जी अद्वितीय हैं!





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Sunday, September 28, 2008

रंग-ए-खुदा (The Color of Paradise)




रंग-ए-खुदा का बाल नायक मोहम्मद एक आठ-नौ वर्षीय नेत्रहीन बालक है। नेत्रहीन बालक अपनी कमजोरियों के बावजूद स्पर्श और सुनने की क्षमता से खुदा के उन रंगो को देख सकता है जो सामान्य लोग नहीं समझ सकते।

मोहम्मद का विधुर पिता उसे तेहरान के नेत्रहीनों के स्कूल से उत्तरी ईरान में अपने गांव छुट्टियों में ले जाता है। गांव में दादी और दो बहनें, मोहम्मद को मिल कर बहुत खुश होते है। दादी गांव के स्कूल के मास्टर से मिल कर मोहम्मद को एक दिन के लिये कक्षा में जाने देती है, पिता दुबारा शादी करना चाहता है उसे लगता है कि एक नेत्रहीन बालक उसके लिये सामाजिक शर्मिंदगी का कारण है। वह जबरदस्ती मोहम्मद को दूर के गांव में एक नेत्रहीन बढई के पास काम सीखने के लिये भेज देता है। इस फैसले से दादी खफा हो जाती है। मोहम्मद के पिता के मानसिक संघर्ष, आशाहीनता और अस्तित्व की लडाई की कहानी देखने लायक है, पिता का खुदा के रंगो को बच्चे के नजरिये से देखने का प्रयास रंग लाता है और वह प्रकृति के रचियता के सामने खुद को समर्पित कर मोहम्मद को वापस ले आता है।

पूरी तरह से काव्यात्मक तरीके से बनाई गई इस फिल्म में ईरान के उत्तरी भाग की प्राकृतिक सुन्दरता को बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है। पक्षीयों की आवाज और मोहम्मद की प्रतिक्रिया सुनने और देखने का आनंद बयान नहीं किया जा सकता!

बच्चों के माध्यम से सामाजिक आईने को दिखाने की मजीद भाई की एक और शानदार प्रस्तुति!

जरुर देखें

Thursday, August 14, 2008

बचेहा-ये-आसेमान (Children of Heaven)


ईरान के मजीद मजीदी की लिखी और निर्देशित भाई - बहन के रिश्ते पर आधारित ये १९९७ की फिल्म आस्कर पुरुस्कारों के लिये नामांकित की गई थी।
अली (आमिर फारुख हशमियां) अपनी बहन जहारा (बहारे सिद्दीकी) के एकमात्र जोडी फटे जूते सिलवा के लाते समय बाजार में खो देता है। मजदूर पिता और बीमार मां के हालात को ध्यान में रख कर और पिटाई होने डर से दोनों बच्चे ये बात मां-बाप को नहीं बताते हैं। अली और जहारा, अली के फटे हुए जूतों को बारी-बारी से पहन कर स्कूल जाते हैं लेकिन अली पूरे समय जूते खो देने के दुख में इस प्रयास में है कि बहन के लिये जूते कैसे लाये जायें।
बच्चों की भावनाओं, ईरान के सामाजिक वातावरण और भाई-बहन के प्यार को बहुत ही सुन्दर तरीके मजीदी ने फिल्मांकित किया है। फिल्म के अंत में अली का जूतों के लिये दौड में भाग लेना और उसे जीतने (?) का प्रयास बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है।

Saturday, August 09, 2008

दुविधा










बोस्टन के बच्चों के संग्रहालय के बाहर का दृश्य, क्या ऐसा नहीं लगता कि ये जनाब इस दुविधा में हैं कि इस कांक्रीट के जंगल में उडूं या नहीं?

Monday, April 28, 2008

हिन्दी ब्लॉगर प्रश्नावली - उत्तर पुस्तिका

जीतू भाई की हिन्दी ब्लॉगर प्रश्नावली पर मेरे कुछ जवाब -

क्या आपका अपना हिन्दी ब्लॉग है?
- है, इस वक्त आप इसी गरीबखाने पर हैं।

आप रोजाना कितने हिन्दी ब्लॉग पढते है?
दस से बीस तक (नाम फुरसतिया ना हुआ तो क्या फुरसत पर तो अधिकार है मेरा भी!)

आपकी ब्लॉगिंग की प्रेरणा किससे मिली?
आप ही तो है, रोगी बनाके रख दिया है, बाहर मिलो तो निबटते है।
ये तो १०००००००% फीसदी सच है, मानो या ना मानो, सबूत में ये देख लो!

आप हफ़्ते मे कितनी पोस्ट लिखते है?
एक से भी कम , सच्चाई तो ये है कि जनम से ही आलसी हूं!

आप ब्लॉगिंग क्यों करते है?
सुना है ब्लॉगिंग करने से लोग भोंदि*बुद्दिजीवी बन जाते है,इसलिए ट्राई मारा।
*भोंदि - भौंदूओं के पाये जानी वाली वैसी ही वस्तु जो बुद्दिजीवीयों के पास बुद्दी के रुप में होती है


आप अपने ब्लॉग पर क्या लिखना पसंद करते है?
दूसरों का पका पकाया विचार "इंसपायर" हो कर अपनी नाक कलम से गाना लिखना!

आप अपने ब्लॉग पर कितने बड़े लेख लिखते है?
एक पैराग्राफ़ वाले (अब १०० किलो के शरीर में एक पाव का दिमाग है जो १ पैरा लिखने में ही थक जाता है)
आप दिन भर मे कितनी टिप्पणियां करते है?
पाँच से दस टिप्पणियां (प्रेम व्यवहार बनाके रखना पड़ता है, कभी तो लोग उधार चुकाएंगे)
ये बात अलग है कि उधार प्रेम की कैंची है।

हिन्दी चिट्ठाकारों के आपसी विवादो पर आपका क्या सोचना है?
सब टीआरपी का खेल है बाबा - बिना टीआरपी बढाये कोई पुरुस्कार मिलता है क्या!

आपके ब्लॉग पर की गयी टिप्पणी आपको कितनी अच्छी लगती है।
- नए ब्लॉगर की टिप्पणी हमेशा, आशा बंधाती है (पुराने गए तो क्या हुआ, एक नया ग्राहक और बढा)

आप ब्लॉगिंग से कितनी कमाई कर लेते है।
-क्यों बताऊं IRS से छापा पडवाओगे क्या?
वैसे बडों ने समझाया था कि महिलाओं से उमर और पुरुषों से कमाई पूछना अच्छी बात नहीं है।


अब इतने जवाब दे दिये, नंबर का हिसाब भी मैं ही लगाऊं ये तो ठीक नहीं, जीतू भाई कितने नंबर दोगे मुझे?




Saturday, April 26, 2008

तितलियां

विकिपीडिया के अनुसार दुनिया भर में तितलियों के बहुत सारे पार्क हैं इनमें से एक मैजिक विंग्स मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है। मेरी वर्षीया बेटी को यह जगह बहुत पसंद है, इसी पार्क में खींची मेरी कुछ तस्वीरें


























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