Sunday, November 12, 2006

ये कैसी रही

कद्दू महोत्सव के दौरान यहां लाइब्रेरी में बच्चों के लिये कई कार्यक्रम होते हैं, उसी में मेरी बिटिया ने एक कद्दू रंगा था, जिसे बालकनी में रख कर सुखाया जा रहा था । लेकिन कद्दू पर तो इनकी नजर लगी थी..



और भर पेट भोजन के बाद मेडम यहां शायद ये गा रही हैं


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Tuesday, October 17, 2006

नया की-बोर्ड

आज दिहाडी काट के लौटते समय मार्केट प्लेस फिर से सुना, जो कि हमेशा सुनता हूं। आज की खास खबर थी - ग्रामीण भारत में उपभोक्ताऒं को बढ़ाने के लिये HP की कोशिश के बारे में..
इसके मुताबिक हिन्दी के सारे अक्षरों को टाइप करने के लिये १५०० कुंजीयों की जरुरत होगी, क्या यह सही है?
लेकिन सही खास बात तो थी HP के जेश्चर आधारित की-बोर्ड की..

अच्छा प्रयास है HP का!

Wednesday, October 11, 2006

बादाम की चोरी

अपने देश में तो गेंहू, चावल के ट्रक गायब होना आम बात है। हर साल हजारों टन अनाज सरकारी खजाने से चोरी होता है और खुले बाजार में बिकता है लेकिन बड़ा देश अमेरिका तो चोरी भी बड़ी... मतलब गेंहू, चावल की ना हो कर बादाम की!

ख़बर यहां पढ़ें

Sunday, October 01, 2006

शरद ऋतु !

नवरात्र, दशहरा और रमज़ान - त्यौहारों का मौसम है भारत में, यहां अमेरिका में हेलोवीन की तैयारी चल रही है, साथ ही उत्तर-पूर्व अमेरिका में पतझड़ की..

पतझड़ी पेड़ो पर पत्तियों के रंग बदलने लगे है.. कुछ चित्र..




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Saturday, July 15, 2006

वाह रे मिडीया!!

मुंबई धमाकों की खबरें तो मैनें यहां अमेरिका में जाल पर ही देखी-पढ़ी लेकिन सौभिक चक्रबर्ती के इस लेख ने बता दिया कि भारतीय टीवी चैनलों ने कितनी फालतू बडबड की होगी!

Saturday, May 20, 2006

क्या हम सुधरेंगे?

पहले मूर्तियों का दूध पीना, मछली चिकित्सा के लिये कतार लगाना, फिर
एक ज्योतिषी का खुद की मृत्यु की घोषणा करना और तमाम लोगों का उस खबर का सीधा प्रसारण देखना..
और अब 'एक चम्मच चमत्कारी पानी'...

क्या हम सुधरेंगे?

इन्तज़ार

मुम्बई यात्रा के दौरान बस की प्रतीक्षा करते समय खींचा चित्र..
ये भी कतार में थे..

Friday, May 19, 2006

भेडाघाट और नियाग्रा

आज कुछ मेरी खींची तस्वीरे नियाग्रा की...









कुछ लोग भेडाघाट और नियाग्रा की तुलना करते है मेरा प्रयास था एक साथ दोनो के चित्रो को रखना...
काश बेहतर प्रबंधन और मार्केटिंग भेडाघाट को भी मिली होती..
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Wednesday, April 26, 2006

भारत यात्रा - भेड़ाघाट

सुनीलजी की भारत यात्रा ने मुझे अपनी गत वर्ष की भारत यात्रा याद दिला दी। इस दौरान अपने शहर जबलपुर भी गया। नर्मदा के किनारे स्थित जबलपुर से कोई १७ किमी दूर भेड़ाघाट संगमरमर की चट्टानो और धुआधार जलप्रपात के लिये प्रसिद्ध है। कुछ चित्र भेड़ाघाट के ..




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Thursday, March 23, 2006

समरथ को तो..

बहुत दिनों से मन में दुविधा चल रही है कि इससे पहले की कंपनी की असफलताऒ का ठीकरा किसी के सर पर फोठा जाये, मैं ही अपने लाभ के पद से त्यागपत्र दे दूं । इससे दो फायदे होंगे बेचारे वरिष्ठ लोगों (मेनेजरो) को मुर्गा तलाश नहीं करना पडेगा और मेरा भी काम (नौकरी) छोडने का हो जायेगा..
भगवान ने चाहा तो कुछ बेहतर माथा-पच्ची करूगा, तभी आत्मा की आवाज़ आई, जैसे कि ज्ञानियो को आती है, कि मूर्ख ऐसा मत करियो!!
मैने कहा क्यों नहीं? सारे लोग ऐसे ही बलिदान देते है और अमर हो जाते है, मै क्यों नहीं कर सकता?
आत्मा ने कहा - याद कर तुलसीदासजी को.."समरथ को नही दोष गोसाईं!!"
मुझे समझ आया.. .."समरथ को तो बलिदान है भाई!!"

Sunday, March 19, 2006

जहाँ चाह वहाँ राह!!

वेबदुनिया पर ये समाचार पढ़ा .. सच है जहाँ चाह वहाँ राह!
प्रशांत जैसे अनगिनत हीरों को शत शत नमन!!

Saturday, February 25, 2006

अमेरिकन देसी

यूं तो ऑफिस में कोई काम नहीं रहता है लेकिन फिर भी दाल-रोटी का सवाल है तो आठ घंटे तो काटने तो पडते हैं। ये और भी महगें लगते है जब आप अकेले हों ऑफिस में, दूसरी पाली में, बिना किसी नयन-सुख साधन के। खैर, अब तो आदत सी हो गई है।

जाल पर उपलब्ध सारे देसी-विदेशी समाचार सेवाओं को छानने के बाद रोज सोचता हूँ कि कुछ अच्छा काम करूं॰॰॰ कुछ नहीं तो लिखने का प्रयास तो कर ही सकता हूँ तो साब लेके बैठा बिना ताम झाम का
देवनागरी टाइपराइटर , कुछ तो अंकित किया मजा नही आया फिर याद आया एक सुभाषित (किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढ़ना उत्तम होगा। — सर विंस्टन चर्चिल ) जो मैने यहाँ पढ़ा। फिर पढ़ा ये - "जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू होते हैं । — गोथे "

निर्भीकता तो उत्पन्न हुई, तभी तो ये लिख रहा हूँ, मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू (काला नहीं) का इन्तजार रहेगा। गोथे कह गये हैं और सुभाषित प्रचलन में भी है तो कुछ तो होता ही होगा।।क्या होगा ये तो समय बतायेगा।

कुछ समय तो ये सोचने में काट दिया कि लिखूं तो क्या लिखू? राजनिती पर (नहीं..नाम ही "निति न" है तो नीति पर कैसे लिख सकता हू), खेल पर..तो लगा के खेलों के बारे मे, मै थोडा पैदल हूँ क्रिकेट को छोड कर, और क्रिकेट भी कोई लिखने का विषय है भला, अपुन के देश का हर आदमी रिक्शे वाले से लेकर किरण मोरे तक
सर्वज्ञ है और सिलेक्टर होने की काबलियत रखता है। यदि अभी के क्रिकेट के हालात पर लिखूगा तो हाँ भाई खाली-पीली में चिठ्ठा जगत के गुणीजनो (फ़ुरसतियो) को नुक्ता-चीनी करने का मौका दूंगा। फिर सोचा कि फिल्मों पर लिखू तो भाई अनुगूंज पर इतना कुछ लिखा गया कि मेरा लिखा समुद्र में बूंद बराबर होता। अपने बड़े शरीर के छोटे से दिमाग को ज्यादा जोर देना उचित नहीं लगा तभी ऑफिस के एक साहब के "जीसी" (ग्रीन कार्ड) के बारे में सुना, तो लगा कि इस महान(?) देश में आकर के इसे अपनाने के हम देशीयों के जुनून पर लिखना उचित होगा। अभी बस अपने वो ही इकलौते दिमाग को जोर दे ही रहा था इस बारे में लिखने पर कि घर से फोन आ गया कि ऑफिस से लौटते समय मीठे नीम की पत्ती लेते आना। बस फिर क्या चिठ्ठा लिखने के लिये और मसाला मिलने की उम्मीद बन गई। इस देश में हम देसी (ऐसा ही कहा जाता है यहां, "देशी" नहीं) जनता को देसी अंदाज में देखना हो तो देसी दुकान से बेहतर जगह और क्या हो सकती है? वैसे यहां देसी भाई-चारे(लालू वाला नहीं) का पर्याय हो गया है, देसी में सभी शामिल है भारतीय, पाकिस्तानी, नेपाली, बांग्लादेशी.. कहने का मतलब श्वेत और जामुनी त्वचा को छोड कर सब (मेरे दूसरे भाई लोग, भिन्न मत रख सकते है) अचानक घडी देखने पर पता चला कि देसी दुकानों के बंद होने का समय होने ही वाला है, यदि अभी ऑफिस से नही निकला तो घर से निकाल दिया जाऊगा।। तो अभी तो चलता हूँ, आगे जारी रखूंगा...

Monday, February 20, 2006

पहला पन्ना

हिन्दी चिट्ठा जगत के समस्त वरिष्ठो को प्रणाम,

हिन्दी चिट्ठा जगत के समस्त वरिष्ठो को प्रणाम,पिछ़ले तीन दिनो मे हिन्दी चिट्ठा के बारे मे इतना कुछ पढ़ा कि खुद को रोक नही पाया, लिखने से। अभी तो सिर्फ इतना ही कि, आप सब ( जितेन्द्रजी, रविजी, अनुनाद, अतुल, अनूप....) के विविध विचार पढ़े और प्रभावित हुआ।

जितेन्द्रजी और रविजी के पन्नो मे से हिन्दी टाईप करने के गुर सीखने की कोशिश कर रहा हू, मात्राऒ की गल्ती सुधारने का प्रयास करूगा।

बहुत ही जल्द आ रहा हू, बहुत कुछ़ कहने और सुनने ।

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