Saturday, February 25, 2006

अमेरिकन देसी

यूं तो ऑफिस में कोई काम नहीं रहता है लेकिन फिर भी दाल-रोटी का सवाल है तो आठ घंटे तो काटने तो पडते हैं। ये और भी महगें लगते है जब आप अकेले हों ऑफिस में, दूसरी पाली में, बिना किसी नयन-सुख साधन के। खैर, अब तो आदत सी हो गई है।

जाल पर उपलब्ध सारे देसी-विदेशी समाचार सेवाओं को छानने के बाद रोज सोचता हूँ कि कुछ अच्छा काम करूं॰॰॰ कुछ नहीं तो लिखने का प्रयास तो कर ही सकता हूँ तो साब लेके बैठा बिना ताम झाम का
देवनागरी टाइपराइटर , कुछ तो अंकित किया मजा नही आया फिर याद आया एक सुभाषित (किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढ़ना उत्तम होगा। — सर विंस्टन चर्चिल ) जो मैने यहाँ पढ़ा। फिर पढ़ा ये - "जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू होते हैं । — गोथे "

निर्भीकता तो उत्पन्न हुई, तभी तो ये लिख रहा हूँ, मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू (काला नहीं) का इन्तजार रहेगा। गोथे कह गये हैं और सुभाषित प्रचलन में भी है तो कुछ तो होता ही होगा।।क्या होगा ये तो समय बतायेगा।

कुछ समय तो ये सोचने में काट दिया कि लिखूं तो क्या लिखू? राजनिती पर (नहीं..नाम ही "निति न" है तो नीति पर कैसे लिख सकता हू), खेल पर..तो लगा के खेलों के बारे मे, मै थोडा पैदल हूँ क्रिकेट को छोड कर, और क्रिकेट भी कोई लिखने का विषय है भला, अपुन के देश का हर आदमी रिक्शे वाले से लेकर किरण मोरे तक
सर्वज्ञ है और सिलेक्टर होने की काबलियत रखता है। यदि अभी के क्रिकेट के हालात पर लिखूगा तो हाँ भाई खाली-पीली में चिठ्ठा जगत के गुणीजनो (फ़ुरसतियो) को नुक्ता-चीनी करने का मौका दूंगा। फिर सोचा कि फिल्मों पर लिखू तो भाई अनुगूंज पर इतना कुछ लिखा गया कि मेरा लिखा समुद्र में बूंद बराबर होता। अपने बड़े शरीर के छोटे से दिमाग को ज्यादा जोर देना उचित नहीं लगा तभी ऑफिस के एक साहब के "जीसी" (ग्रीन कार्ड) के बारे में सुना, तो लगा कि इस महान(?) देश में आकर के इसे अपनाने के हम देशीयों के जुनून पर लिखना उचित होगा। अभी बस अपने वो ही इकलौते दिमाग को जोर दे ही रहा था इस बारे में लिखने पर कि घर से फोन आ गया कि ऑफिस से लौटते समय मीठे नीम की पत्ती लेते आना। बस फिर क्या चिठ्ठा लिखने के लिये और मसाला मिलने की उम्मीद बन गई। इस देश में हम देसी (ऐसा ही कहा जाता है यहां, "देशी" नहीं) जनता को देसी अंदाज में देखना हो तो देसी दुकान से बेहतर जगह और क्या हो सकती है? वैसे यहां देसी भाई-चारे(लालू वाला नहीं) का पर्याय हो गया है, देसी में सभी शामिल है भारतीय, पाकिस्तानी, नेपाली, बांग्लादेशी.. कहने का मतलब श्वेत और जामुनी त्वचा को छोड कर सब (मेरे दूसरे भाई लोग, भिन्न मत रख सकते है) अचानक घडी देखने पर पता चला कि देसी दुकानों के बंद होने का समय होने ही वाला है, यदि अभी ऑफिस से नही निकला तो घर से निकाल दिया जाऊगा।। तो अभी तो चलता हूँ, आगे जारी रखूंगा...

Monday, February 20, 2006

पहला पन्ना

हिन्दी चिट्ठा जगत के समस्त वरिष्ठो को प्रणाम,

हिन्दी चिट्ठा जगत के समस्त वरिष्ठो को प्रणाम,पिछ़ले तीन दिनो मे हिन्दी चिट्ठा के बारे मे इतना कुछ पढ़ा कि खुद को रोक नही पाया, लिखने से। अभी तो सिर्फ इतना ही कि, आप सब ( जितेन्द्रजी, रविजी, अनुनाद, अतुल, अनूप....) के विविध विचार पढ़े और प्रभावित हुआ।

जितेन्द्रजी और रविजी के पन्नो मे से हिन्दी टाईप करने के गुर सीखने की कोशिश कर रहा हू, मात्राऒ की गल्ती सुधारने का प्रयास करूगा।

बहुत ही जल्द आ रहा हू, बहुत कुछ़ कहने और सुनने ।

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